परिश्रम का महत्त्व
भूमिका-
जीवन के उत्थान में परिश्रम का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जीवन में आगे बढ़ने के लिए, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए श्रम ही आधार है। परिश्रम से कठिन से कठिन कार्य संपन्न किए जा सकते हैं, जो परिश्रम करता है उसका भाग्य भी उसका साथ देता है जो सोता रहता है उसका भाग्य सोता रहता है। श्रम के बल अगम्य पर्वत चोटियों पर अपनी विजय का पताका पहरा दिया। परिश्रम के बल पर मनुष्य चंद्रमा पर पहुंच गया
श्रम के कारण ही मनुष्य समुद्र की गहराई तक तक पहुंच गया। कोयले की खदानों से बहुमूल्य पदार्थ तक खोज निकाले। मानव सभ्यता और उन्नति का एकमात्र आधार श्रम ही है। श्रम हर मनुष्य अपनी मंजिल पर पहुंच जाता है। अथक परिश्रम ही जीवन का सौंदर्य है। श्रम के द्वारा ही मनुष्य अपने आपको महान बना सकता है। परिश्रम ही मनुष्य के जीवन को महान बनाने वाला है। परिश्रम ही वास्तव में ईश्वर की उपासना है।
भाग्यवान-
जिन लोगों ने परिश्रम का महत्व नहीं समझा वे गरीबी और दरिद्र का दुख भोंकते रहे, जो लोग भाग्य को विकास का सहारा समझते थे वे भ्रम में है। मेहनत से जी चुराने वालों का आज कुछ नही हो सकता। जो चलता है वही आगे बढ़ता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। श्रम से सब कार्य सफल होते हैं केवल कल्पना के महल बनाने से मनुष्य व्यक्ति अपने मनोरथ को पूर्ण नहीं कर सकता।
प्रकृति परिश्रम का पाठ पढ़ाती है-
प्रकृति के प्रांगण में झांका देखे तो चीटियां रात दिन अथक परिश्रम करती हुई नजर आती हैं पक्षी दाने की खोज में अनंत आकाश में उड़ते दिखाई देते हैं हिरण आहार की खोज में वन उपवन में भटकते रहते हैं।
समस्त सृष्टि में श्रम का चक्र चलता रहता है जो लोग श्रम को त्याग कर आलस्य का सहारा लेते हैं वे जीवन में असफल होते हैं, भाग्य भी परिश्रमी लोगों का साथ देता है।
मानसिक तथा शारिरीक परिश्रम-
परिश्रम मानसिक हो चाहे शारीरिक श्रम दोनों ही श्रेष्ठ है परंतु शारीरिक परिश्रम को श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि शारीरिक श्रम हमारे शरीर के रोगों को दूर करता है तथा शरीर को तंदुरुस्त बनाकर रखता है मानसिक श्रम भी हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी है, अतः हमें दोनों पसंद आना चाहिए।
भाग्य और पुरुषार्थ-
भाग्य और पुरुषार्थ जीवन के दो पहिए हैं, भाग्यवादी बनकर हाथ पर हाथ रखकर बैठना मुर्ख की निशानी है। परिश्रम के बल पर ही मनुष्य अपने बिगड़े भाग्य को बदल सकता है। परिश्रम के बल पर ही मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
उपसंहार-
परिश्रमी व्यक्ति ही राष्ट्र को महान बनाता है। जिससे व्यक्ति का विकास और राष्ट्र की उन्नति होती है। संसार में महान बनने के लिए और अमर होने के लिए परिश्रम करना अनिवार्य है। श्रम से अपार आनंद मिलता है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने श्रम की पूंजी का पाठ पढ़ाया, उन्होंने कहा श्रम से स्वावलंबी बनने का सौभाग्य मिलता है।
हम अपने देश को परिश्रम से उपर उठा सकते हैं। यदि आजादी की रक्षा करनी है तो प्रत्येक भारतवासी को स्वावलंबी तथा परिश्रमी बनना होगा।
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